मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

सांध्य वंदना भी है पुण्यदायी


जिस तरह नदियों का संगम पुण्यवान माना जाता है, ठीक उसी तरह दिन और रात्रि का मिलन समय यानी संध्याकाल भी अत्यंत पुण्यदायी होता है। संध्या वंदन को वेदों में अपार पुण्यदायक माना गया है। जिस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त में की गई प्रार्थना संपूर्ण दिन के लिए शुभ होती है, उसी प्रकार संध्या वेला में जब सूर्य अस्त हो रहा हो और रात्रि के प्रथम प्रहर का आगमन हो रहा हो, उस समय की गई वंदना रात्रि के लिए शुभ होती है। दुर्गासप्तशती के वेदोक्त रात्रिसूक्त में रात्रिदेवी के लिए बड़ी सुंदर प्रार्थनाएं की गई हैं-
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामनविक्ष्महि। वृक्षे न वसति वय:।
-4 दुर्गासप्तशती पृष्ठ संख्या 42
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूंम्र्ये। अथा न: सुतरा भव। 6 दुर्गासप्तशती
अर्थात वे रात्रि देवी इस समय मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके आने पर हम लोग अपने घरों में सुख से सोते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाए हुए अपने घोंसलों में सुखपूर्वक शयन करते हैं। हे रात्रि देवी! तुम कृपा करके वासनामय और पापमय इच्छाओं को हमसे अलग करो। हमारे लिए सुखपूर्वक रहने योग्य हो जाओ। मोक्षदायिनी एवं कल्याणदायिनी बन जाओ।
यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब हम दिन भर रोजमर्रा के कार्यो में व्यस्त रहते हैं, तो फिर रोजाना संध्या वंदना के लिए कब समय निकालें? इसका एक ही उत्तर है कि आप जहां जिस स्थान पर हैं, वहीं आराधना करें। जब समय मिले, तब आराधना करें। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-अपने आपको ऊपर उठाओ। उद्धरेदात्मनात्मानं यानी अपना उद्धार स्वयं करो। कोई दूसरा व्यक्ति आपका उद्धार नहीं कर सकता।

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